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Taadaka vadh

 दषरथनन्दन, रघुकुल वंदन   हार्दिक अभिनन्दन  स्वागत  आप पधारे हमारे मठ  यहाँ हैं सभी सुख  मंत्रोचारण करते सभी मुख  ना ही कोई होता भय  सभी का पेट भरता यह अक्षय  पर ताड़का है  यह बड़ी भरी  कृत्यों से राक्षस  पर है यह नारी  कभी नष्ट कर देती  हवन समिधा   तो कभी ले भागती यह  यग्न फल  उद्धार करो हे कौशल्यानंदन  उठाओ बाण  कर दो छिन्न भिन्न  जो हमारा है  दिलाओ हमें  अधर्म से छुटकारा  दिलाओ हमें  मत करो विषाद  त्रिमातृका अपत्य  यह नारी नहीं  निशिचरी है या है दैत्य  पशु घात या नारी पे आघात  ऋषि कल्याण या समाज निर्माण  राम के प्रश्न कई  क्या समझ सका है कोई? राम ने ठाना था  राम राज्य का स्वप्न  कर दिया विश्व निर्माण में  अपना भी हवन  विश्वामित्र की आकुलता में  राम ने त्रिजटा का कर दिए वध  राम राज्य की स्थापना  की थी यहीं से प्रारब्ध  करो यज्ञ, करो व्यापार  लेन देन से बढ़ता है यह संसार  छीनो मत, उठाओ मत, बिना कर्म ना उसपर तुम्हारा अधिकार  कर्म होगा तो फल मिलेगा  क्या मिलेगा, न उसपर कोई जोर होगा  कर्म से ही धर्म है  और धर्म वही है जो जोड़े सभी को  ना वह जो मुंह मोड तोड़े सभी को