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Showing posts with the label Poem

चिता

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चिता  यह कैसी आग है ? सभी तरफ फैली हुयी, ऊँची लाल तपती लपटें , सब कुछ जलाती हुयी ?                                   बढ़ती उफनती यह ज्वाला ,                                    मेरी तरफ ही आ रही है।                                     और वो मोहल्ले के बाबा,                                    देखो तो कहाँ जा रहे हैं ? और यह पड़ोस की नानी ? सुनती थी रोज कहानी, आज किधर जाती हो ? मुझे दूर कहाँ जाती हो ?                                    देखो तो बालसखा मेरे ,    ...

Taadaka vadh

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 दषरथनन्दन, रघुकुल वंदन   हार्दिक अभिनन्दन  स्वागत  आप पधारे हमारे मठ  यहाँ हैं सभी सुख  मंत्रोचारण करते सभी मुख  ना ही कोई होता भय  सभी का पेट भरता यह अक्षय  पर ताड़का है  यह बड़ी भरी  कृत्यों से राक्षस  पर है यह नारी  कभी नष्ट कर देती  हवन समिधा   तो कभी ले भागती यह  यग्न फल  उद्धार करो हे कौशल्यानंदन  उठाओ बाण  कर दो छिन्न भिन्न  जो हमारा है  दिलाओ हमें  अधर्म से छुटकारा  दिलाओ हमें  मत करो विषाद  त्रिमातृका अपत्य  यह नारी नहीं  निशिचरी है या है दैत्य  पशु घात या नारी पे आघात  ऋषि कल्याण या समाज निर्माण  राम के प्रश्न कई  क्या समझ सका है कोई? राम ने ठाना था  राम राज्य का स्वप्न  कर दिया विश्व निर्माण में  अपना भी हवन  विश्वामित्र की आकुलता में  राम ने त्रिजटा का कर दिए वध  राम राज्य की स्थापना  की थी यहीं से प्रारब्ध  करो यज्ञ, करो व्यापार  लेन देन से बढ़ता है यह संसार  छीनो मत, उठाओ...

रावण की विनती

कोदंड संभाले राम ने आज फिर शर साधा है। सामने अश्रुपूरित रावण ने आज एक विनती कह डाली है। विनिर्बन्ध, विनय, विवेकी, शील, दयालु, नम्र, स्नेही, आशान्वित, धैर्य और निगृह यह सभी गुण तो तुम्हारे थे राम। क्रोध, लोभ, मोह काम, ईर्ष्या, दम्भ, भय, दुःख द्वेष, आवेश गुण, अवगुण सभी हैं यह मेरे। बहिन का प्रतिशोध लेने को, कुल का उद्धार करने को, अनेकानेक असुरों को मुक्ति दिलाने को, अधर्म की राह चुनी मैंने। मायावी तो मैं था हे राम , अकेला मैं अनेक बन, मचाता था कोहराम। फिर आज क्या हो गया? एक ही हूँ मैं, पर अनेक हैं राम? फिर यह कैसे हुआ राम? एक से अनेक तुम कब हुए? मायावी तुम कब बने? रूप है राम का, कार्य हैं रावण के? यह कैसे हो गया राम? उठाओ तीर, भेद दो मेरा ह्रदय, काट दो मेरे हाथ मेरे सर, जला दो मुझे एक बार फिर। पर, बोलो तो, अपने अंदर का रावण कब मारोगे? लोभ, मोह, काम को कब तुम अंकुश लगाओगे? स्वार्थाचार को कब तुम आग लगाओगे? अंतःरावण को मिटा सको तुम, सदाचार की अग्नि में जल सको तुम, सद्भाव का ज्ञान समझ सको तुम, सत्यपरायणता का पालन कर सको तुम, तो, ...

mrignayani

मृगनयनी, चांदनी  अविरल प्रेम संचायनी  मधुरिमा जीवनदायिनी  दुःख हरिणी, चपल चितवन मानिनी  सर्वत्र तिमिर भंजिनि हे प्रेमिका मेरा ह्रदय है सिर्फ आपका  चरण ध्वनि अनुसारिणी   

Sapnay - Dreams

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जाग उठा हूँ मैं, उस बेदर्द नींद से, जो हमेशा साथ में, कितने सारे सपने ले आती है। उन्हीं टूटे सपनों की टीस, अब भी महसूस होती है, उन्ही अनकहे सपनों में ना जाने, किस किस से बात होती है। इन्हीं सपनों में, सारी ज़िन्दगी उतर आती है, कभी शिखर पे ले जाती है, कभी खाई में पटक जाती है। हर सपना मुझे, घाव नया दे जाता है, ज़मीन के नीचे, और नीचे, दफ़न कर जाता है। सपने सच नहीं होते, यह मैंने सीखा है, पर सपने ना देखूं, यह भी कहाँ हो पाता है। सपने मन का आईना हैं, तभी तो मैं सपने देखता हूँ, और हर बार चोट खाने पर, आंसुओं का मलहम रखता हूँ। जाग तो चूका हूँ मैं, उस बेदरद नींद से, पर फिर से आगोश में लेने को, चले आ रहे हैं, यह कांच के सपने।

Jeevan ke rang - Colors of life

मन में इच्छा थी,     जीवन में रंग भरने की।  रंग ढूंढने चला मैं,     लाल नीले हरे पीले - सभी रंग।  कभी होली, कभी दीवाली,     कहीं लालिमा, कहीं हरियाली।  ऊँगली पकड़ खड़े होते देखा,     गिर गिर कर उठते देखा।  उन्मुक्त हँसी से खिलखिलाते देखा,     निश्छल मन से जीते देखा।  किसी के विरह में बिछड़ते देखा,     मिलान की ख़ुशी में फूलते देखा।  फिर एक दिन,      अचानक सब कुछ बदल सा गया।    निश्छलता के रूप में छल आ गया,      जोश से भरे चेहरों पर आयु का आवरण छ गया।  झुर्रियां दिखने लगीं,      साँसें उखाड़ने लगीं।  अपने पराये होने लगे,      विरही हैं प्रेम की आस तलाशने लगे।  इतने रंग दिखने लगे,      जीवन के चित्रपट भी छोटे पड़ने लगे। जीवन में कितने सारे रंग थे,      और हर रंग के अपने ही मायने थे ! अब तो बस मन में इच्छा है,      जीवन के सभ रंग देखने और समझने की...

Horizon

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क्षितिज की ओर  चल पड़ा था मैं , छोड़ कर सब कुछ, जो मेरा था  और जो पाना था - वह सब  जो मेरा होता।  राह पर निकला मैं, अपनी मंजिल पाने , चला जा रहा था, क्षितिज की ओर।  मेरे गांव और शहर, नदी - नाले, जंगल - जानवर, सब छूटे जा रहे थे।  सूरज और मेघ ही  संग संग चल रहे थे।  तारे भी चाँद को , कभी छुपा लेते थे।  और मैं  चला जा रहा था  क्षितिज की ओर।  नंगे पैर, फटे वस्त्र, हाथ में डंडे पर पोटली लिए, चंचलता का उपदेश देता मैं, चला जा रहा था।  राह में लोग और भी थे, मेरे जैसे, वैसी ही आँखें, हाथ और पैर लिए।  पर, नहीं जा रहे थे वे, क्षितिज की ओर।  एक चौराहा, और मैं अनजाना, घबराया सहमा सा, सोचता था जाऊं कहाँ? पूछता था तो उत्तर नहीं, चलता था तो साथ नहीं, राही मुझे छोड़ चल दिए कहीं, और मेरी मंजिल दूर वहीँ, जाना था मुझे जिस ओर, क्षितिज की ओर।  साहस था, हौसला था, मन में एक जोश था, की चलते रहना हैं, और क्षितिज को पाना है।  ...

Death - The end

I could hear the morning hymns, I could hear the chirping of birds, I could hear the music of the rivers, I could hear the air descending from the mountains.                           I couldn't hear the snake hissing,                           I could not hear someone creeping,                           I could see a vulture hovering,                           I could see an owl staring. Someone moved ahead with me behind, I followed with my eyes blind, A wolf howled, and a dog cried, The vulture winked eyes and dived.                           I felt like in a prison,                   ...

Chaand

चाँद  काली अमावस्या गई, और चाँद फिर निकला।  रोज नयी छटा बिखेरता, चांदनी की शीतलता लिए, देखो चाँद फिर निकला।  बढ़ता ही रहा, हमारे संबंधों की तरह, विशाल अजगर की तरह, आज की महंगाई की तरह, देखो चाँद बहता ही रहा।  अचानक चाँद रुक गया, हमारा रिश्ता भी बदल गया।  चाँद अब घट रहा था, तुम भी तो दूर जा रहे थे, जब तुम न थे, चाँद पूरा निकला था।  अँधेरा फिर से छा रहा है, हम तुम बिछड़ चुके हैं।  पुनः चाँद का इंतज़ार कर रहे हैं, पुनः मिलन की आस जोट रहे हैं।  अमावस फिर से छा रही है।  पर अब अमावस भयावह नहीं, हम तुम अकेले भी नहीं।  परिपक्व संबंधों की आड़ में, सुन्दर यादों की छाँव में, चाँद फिर से निकलेगा। 

Aaj fir holi hai

आओ खेलें रंग, गुलाल और अबीर संग, भर भर मारें पिचकारी क्यों की आज फिर होली है। खेलो रंग, पियो भंग, मचाओ हुड़दंग, नाचो एक संग, क्यों की आज फिर होली है। जाली थी जा होलिका, हार बुराई की हो ली थी। मन में भर उमंग , खेली सबने होली थी। बापू ने जो दिखाई राह अहिंसा की हो ली थी। भगत सिंह ने हो लाचार, खेली खून से होली थी। दंगों में जो जली वह सभ्यता की होली थी, पाश्विक  कृत्यों में उलझ मानवता की धज्जियाँ भी तो हो लीं थीं। होलिका संग गन्ने जलाओ घर का पुराना कूड़ा जलाओ। साथ ही जलाओ मन का अंतर्मन जो दुर्भावना में ग्रसित हो चुका है। क्यों की आज फिर होली है रंग संग खेलें हम आज फिर होली है मन में फिर क्यों है मुटाव जबकि आज फिर होली है। खेलो जी भर कर क्यों की आज फिर होली है। करो नाश पाश्विकता का, अमानवीयता का लगाओ रंग मेल का, हमदर्दी का, क्यों की आज फिर होली है।

Paati - Letter

पाती तुम्हें लिख रहा हूँ, दिल थाम कर पढ़ना। बातें तो बहुत हैं, पर आज कुछ विशेष है कहना। चाहो तो मुझे ही दोषी कहना, पर मेरा हाल भी समझना। जो सपने हमने देखे थे, उन्हें जीवन मत समझना। जिन राहों पर चलना था, उन पर बबूल उग आये हैं, ज़रा देखना। मेरा धीमे चलना तुम्हें नापसंद था, पर तेज चलना कठिन है, ज़रा समझना। तुम दूर जा चुकी हो, पर मुझे आज भी अपने आंसुओं में पाना। अब जो भी है, वही जीवन है, इस जीवन को सुख से जीना। मैंने भी जीवन से बहुत सीखा है, तुम मेरी चिंता मत करना। अब भी सपने देखना, पर मुझे नायक मत बनाना। इस संदेसे को खूब पढ़ना, और जो अनकहा है, वह भी समझना। दोषी न तुम हो, न मैं, पर इस सज़ा को तो पड़ेगा सहना। मैं हर गम सह लूँगा, बस तुम्हारे सुख की ही करूंगा कामना। फिर से विनती करता हूँ, कभी अलविदा ना कहना, मुझे अपने आँसुओं में छुपा कर रखना। पाती तुम्हें भेज रहा हूँ, दिल थाम कर पढ़ना। 

Dera - Settlement

चहचाहते पेड़ , मस्तानी पवन, शोर करती चंचल सरिता , और संजीवनी देता सूरज।  यही पा कर ही, कल ही तो डेरा लगाया था।  पेड़ भी मिले , पक्षी भी मिले , सरिता भी मिली, और सागर भी मिले, सूरज भी मिला और चाँद संग तारे भी मिले, उछलते कूदते जानवर, और शिल्प गाथा गाते पत्थर भी मिले।  तभी तो, यहीं डेरा लगाया था।  सब कुछ मिला पर कुछ अधूरा था , इस सुन्दर प्रकृति के बीच मैं अकेला था।  जो भी पाया वह मैं था और मेरा सपना था।  पर अपनी खोज में मैं सभी से दूर हो गया था।  और जो साथ थे, अपनाते ही ना थे।  तभी तो आज डेरा उखड़  गया।   क्यों था मैं अकेला? क्यों छोड़ गए मुझे सब? प्रकृति की रचना अच्छी तो मैं क्यों नहीं? मैं तो सोच रहा, तुम भी सोचो ना।  सोचना फिर तो खोजना मुझे, क्यों की कल ही तो डेरा लगाया था, और आज उखड भी गया। 

Dreams

जाग उठा हूँ मैं, उस बेदर्द नींद से, जो हमेशा साथ में, कितने सारे सपने ले आती है। उन्हीं टूटे सपनों की टीस, अब भी महसूस होती है। उन्हीं अनकहे सपनों में न जाने, किस किस से बात होती है। इन्हीं सपनों में, सारी ज़िन्दगी उतर आती है। कभी शिखर पे ले जाती है, कभी खाई में पटक जाती है। हर सपना मुझे घाव नया दे जाता है। जमीन के नीचे और नीचे, दफ़न कर जाता है। सपने सच नहीं होते, यह मैंने सीखा है। पर सपने ना देखूं, यह भी कहाँ हो पता है? सपने मन का आईना हैं, तभी तो मैं सपने देखता हूँ। और हर बार चोट खा कर, अपने घाव पर आंसुओं का मलहम रखता हूँ। जाग तो चुका हूँ मैं, उस बेदर्द नींद से, पर फिर से अपने आगोश में लेने को, चले आ रहे हैं, यह काँच के सपने।

An ode to parents - Janak - Janani

हरी कोंपलों में जन्मे थे, मजबूत शाखा से लग सपने भी तो देखे थे? फिर, आज इन पीले पत्तों से मुंह क्यों मोड़ लिया? इन्हें भी तो, समय ने यहाँ ला कर छोड़ा। इन्हीं के तो तुम रूप हो, इन्हीं की हो छवि। यह तुम्हारे जनक हैं, और यही तुम्हारी जननी। 

The story of a River

कल कल, कल कल करती, मस्त चाल से चलती नदी, चली जा रही सागर से मिलने। पर्वतों की गोद में खेलती, धरती के ह्रदय में अठखेलियाँ करती, देखो तो सागर से मिलने चल दी। कितने युग बदले, कितनी सभ्यताएँ बदलीं, नहीं बदली तो यह नदी। सब देखा है इसने, सब सहा है इसने, फिर भी देखो चञ्चलता आज भी उतनी ही है। कभी गाँव लीलती है, तो कभी सिंचाई करती है, कभी पत्थर काटती है, तो कभी खुद को बंधवा लेती है, फिर भी सबकी प्यास मिटाती जाती है। जो छूट गया, ना उसका दुःख, जो आगे आएगा, ना उसका भय, इसे तो बस चलते जाना है। पर्वतों का सन्देश सागर तक पहुंचाना है, अपना रास्ता स्वयं ही बनाना है, जन्म से वृद्धावस्था तक बस चलते ही जाना है। 

A twisted ode to the monsoon

Now that monsoon has entered India and is all set to advance further, I thought it apt to share my twisted ode to rains. Please note that this in no sense a subliming of their importance. Hope you shall get the message as you go through the words - मुझे  बारिशों से प्रेम है यह प्रेम  सन्देश लाती हैं। तन -मन का मैल धोती हैं दुःख दूर कर सुख लाती हैं। धरा के ह्रदय ज्वाला शांत करती हैं धरतीपुत्रों को जीवन दान देती हैं। सर्वत्र हरियाली का सन्देश देती हैं  और प्रेमी इन मेघदूतों को देख प्रसन्न हो उठते हैं। एक रोज बारिश आई थी निर्मम निरंतर बारिश। सर्वत्र अँधेरा, सर्वत्र नीर देखने से लगता मानो यहीं है क्षीर। सब कुछ बहा ले गयी वह बारिश पेड़, पौधे, ढोर, डंगर सब।  उन्हें भी जो बारिश का स्वागत  करते थे, नाच गा कर मन में उमंग भरते थे। यह बारिश सब बहा ले गयी, तुम्हें भी।  अब मुझे बारिशों से घृणा है। इसका काम सिर्फ बहाना है। इसमें भीगने का जो रस है , वह मात्र एक छलावा है। इसके चले जाने पर हाथ कुछ नहीं आता है, कपड़ों के साथ मन भी निचुड़ जा...

Maa

On the occassion of Mother's Day, I would like to share a few lines that I read long ago. These words are powerful and meaningful. so HANDLE WITH CARE माओं को  मखमल पे रखो  झूला दो  फूलों पे  वे हैं आज  मगर होंगी कल ना  सोचो तब  क्या क्या  खो जाएगा  जीवन से ? सोचो ना ! फिर सोचो 

Holi

रंग भरी देखो होली आई , मस्तानों की टोली आई। उड़ रहा है अबीर गुलाल।, मस्तानी है सबकी चाल। रंग भरी देखो होली आई , मस्तानों की टोली आई। खुशियों की सौगात है यह लाई, संग संग रंग खेलें सब भाई। बापू संग ठिठोली करें हैं माई , और बीवी रंगे देवर भौजाई। बच्चों ने जब पिचकारी चलाई , दादी संग नानी भी नहलाई। सुखी है अपना जीवन भाई , रंग भरी देखो होली आई। मन का चैन फिर भी रहा है काट , क्यों ना लें हम खुशियाँ बाँट। काहे करें हम लड़ाई , जब देखो हैं होली आई। खून होता सबका लाल , हरा पीला तो होता गुलाल। क्यों रहते हो खुद को बाँट ? खुशियों को लेते हो खुद ही काट। रंग भरी देखो होली आई, मस्तानों की टोली आई। सदा साथ रहने की हैं हमने कसम खाई , भेदभाव होलिका सांड जलाई। प्रेम कि हैं मिठाई खाई , आओ नाचें हम सब भाई, एकता की दें दुहाई, क्यों की रंग भरी देखो होली आई, मस्तानों कि टोली आई।

Khalnaayak Ki Khoj - Search for the villain

श्रीमान नायक कहते हैं  नया है जमाना , बेटे और बेटी में फर्क बतलाना।  बेटी को खूब पढ़ाएंगे , पांचवी कक्षा में ही शादी करवायेंगे ।  बहू नहीं बेटी चाहिए , साथ में ट्रक भर दहेज़ चाहिए।  पश्चिम में फ़ैल रहा व्याभिचार , और खुद रखते पत्नी चार।  आधुनिकता है अनैतिकता का प्रचार , दूसरे के कपड़ों में झांकते हैं, ढूंढ मौके हजार।  स्वयं हैं समाज सुधारक , और कार्य हैं हृदय विदारक।  स्वयं हैं महाज्ञानी , तानों के सिवाय कुछ भी देना हैं बेमानी।  देने का हाथ तो है एक, और बटोरने के अनेक।  बड़ों का करते हैं बहुत आदर, सोचते हैं मरें तो काटें पाप के गागर।  प्रेम है ईश्वर का वरदान, और प्रेमियों का मिलन है विषपान।  हम हैं बहुत ज्ञानी, यह धन माया तो है एक दिन आनी जानी,  इसे जोड़ कर क्या करोगे ? मेरे पास छोड़ कर सुखी रहोगे।  लूटपाट है धर्म इनका, हिंसा ही है मंत्र इनका।  मेरे तरकस में हैं अनेकों तीर , एक से मरे ख्वाज़ा, एक से मरे पीर।  एकछत्र राज जो चलना है, सर्वत्र अपना ही धर्म फैलाना है।  ...

Indradhanush

इंद्रधनुष की छटा निराली , कभी लालिमा तो कभी हरियाली , जीवन की भी रीत ऐसी , कभी आँसू तो कभी बातें सुहासी।  धनुष है सन्देश प्रेम का  धरती से आकाश के मिलन का , और जीवन  स्वयं ईश्वर से मानव का।  फूल खिल उठते हैं , पक्षी सुरीले गीत गाते हैं , बरखा और सूरज मिल कर नाचते हैं , जब इंद्रधनुष के दर्शन होते हैं।  और यहाँ गोली चलती है , छुरी भोंकी जाती हैं , उसी जीवन को ख़त्म करने के लिए , जो ईश्वर से हमें मिलता है।  इंद्रधनुष के रंग कई , पर सब रंग दिखें साथ।  मानव के भी रूप कई , पर हम रहे खुद को बाँट।  माँ के लिए  सब बच्चे होते समान , फिर प्रकृति की गोद में , हम करों बनें असमान।  My work published on an hindi portal in 2001 -  http://www.anubhuti-hindi.org/nayihawa/n/nitinrastogi/indradhanush.htm