Sapnay - Dreams






जाग उठा हूँ मैं,
उस बेदर्द नींद से,
जो हमेशा साथ में,
कितने सारे सपने ले आती है।
उन्हीं टूटे सपनों की टीस,
अब भी महसूस होती है,
उन्ही अनकहे सपनों में ना जाने,
किस किस से बात होती है।
इन्हीं सपनों में,
सारी ज़िन्दगी उतर आती है,
कभी शिखर पे ले जाती है,
कभी खाई में पटक जाती है।
हर सपना मुझे,
घाव नया दे जाता है,
ज़मीन के नीचे, और नीचे,
दफ़न कर जाता है।
सपने सच नहीं होते,
यह मैंने सीखा है,
पर सपने ना देखूं,
यह भी कहाँ हो पाता है।
सपने मन का आईना हैं,
तभी तो मैं सपने देखता हूँ,
और हर बार चोट खाने पर,
आंसुओं का मलहम रखता हूँ।
जाग तो चूका हूँ मैं,
उस बेदरद नींद से,
पर फिर से आगोश में लेने को,
चले आ रहे हैं, यह कांच के सपने।

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