Aaj fir holi hai
आओ खेलें रंग,
गुलाल और अबीर संग,
भर भर मारें पिचकारी
क्यों की आज फिर होली है।
खेलो रंग, पियो भंग,
मचाओ हुड़दंग,
नाचो एक संग,
क्यों की आज फिर होली है।
जाली थी जा होलिका,
हार बुराई की हो ली थी।
मन में भर उमंग ,
खेली सबने होली थी।
बापू ने जो दिखाई
राह अहिंसा की हो ली थी।
भगत सिंह ने हो लाचार,
खेली खून से होली थी।
दंगों में जो जली
वह सभ्यता की होली थी,
पाश्विक कृत्यों में उलझ
मानवता की धज्जियाँ भी तो हो लीं थीं।
होलिका संग गन्ने जलाओ
घर का पुराना कूड़ा जलाओ।
साथ ही जलाओ मन का अंतर्मन
जो दुर्भावना में ग्रसित हो चुका है।
क्यों की आज फिर होली है
रंग संग खेलें हम
आज फिर होली है
मन में फिर क्यों है मुटाव
जबकि आज फिर होली है।
खेलो जी भर कर
क्यों की आज फिर होली है।
करो नाश पाश्विकता का, अमानवीयता का
लगाओ रंग मेल का, हमदर्दी का,
क्यों की आज फिर होली है।
गुलाल और अबीर संग,
भर भर मारें पिचकारी
क्यों की आज फिर होली है।
खेलो रंग, पियो भंग,
मचाओ हुड़दंग,
नाचो एक संग,
क्यों की आज फिर होली है।
जाली थी जा होलिका,
हार बुराई की हो ली थी।
मन में भर उमंग ,
खेली सबने होली थी।
बापू ने जो दिखाई
राह अहिंसा की हो ली थी।
भगत सिंह ने हो लाचार,
खेली खून से होली थी।
दंगों में जो जली
वह सभ्यता की होली थी,
पाश्विक कृत्यों में उलझ
मानवता की धज्जियाँ भी तो हो लीं थीं।
होलिका संग गन्ने जलाओ
घर का पुराना कूड़ा जलाओ।
साथ ही जलाओ मन का अंतर्मन
जो दुर्भावना में ग्रसित हो चुका है।
क्यों की आज फिर होली है
रंग संग खेलें हम
आज फिर होली है
मन में फिर क्यों है मुटाव
जबकि आज फिर होली है।
खेलो जी भर कर
क्यों की आज फिर होली है।
करो नाश पाश्विकता का, अमानवीयता का
लगाओ रंग मेल का, हमदर्दी का,
क्यों की आज फिर होली है।
Comments
Post a Comment