Friday, July 3, 2015

Chaand

चाँद 

काली अमावस्या गई,
और चाँद फिर निकला। 
रोज नयी छटा बिखेरता,
चांदनी की शीतलता लिए,
देखो चाँद फिर निकला। 

बढ़ता ही रहा,
हमारे संबंधों की तरह,
विशाल अजगर की तरह,
आज की महंगाई की तरह,
देखो चाँद बहता ही रहा। 

अचानक चाँद रुक गया,
हमारा रिश्ता भी बदल गया। 
चाँद अब घट रहा था,
तुम भी तो दूर जा रहे थे,
जब तुम न थे, चाँद पूरा निकला था। 

अँधेरा फिर से छा रहा है,
हम तुम बिछड़ चुके हैं। 
पुनः चाँद का इंतज़ार कर रहे हैं,
पुनः मिलन की आस जोट रहे हैं। 
अमावस फिर से छा रही है। 

पर अब अमावस भयावह नहीं,
हम तुम अकेले भी नहीं। 
परिपक्व संबंधों की आड़ में,
सुन्दर यादों की छाँव में,
चाँद फिर से निकलेगा। 

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