Friday, September 19, 2014

Dera - Settlement

चहचाहते पेड़ ,
मस्तानी पवन,
शोर करती चंचल सरिता ,
और संजीवनी देता सूरज। 
यही पा कर ही,
कल ही तो डेरा लगाया था। 

पेड़ भी मिले , पक्षी भी मिले ,
सरिता भी मिली, और सागर भी मिले,
सूरज भी मिला और चाँद संग तारे भी मिले,
उछलते कूदते जानवर,
और शिल्प गाथा गाते पत्थर भी मिले। 
तभी तो,
यहीं डेरा लगाया था। 

सब कुछ मिला पर कुछ अधूरा था ,
इस सुन्दर प्रकृति के बीच मैं अकेला था। 
जो भी पाया वह मैं था और मेरा सपना था। 
पर अपनी खोज में मैं सभी से दूर हो गया था। 
और जो साथ थे, अपनाते ही ना थे। 
तभी तो आज डेरा उखड़  गया।  

क्यों था मैं अकेला?
क्यों छोड़ गए मुझे सब?
प्रकृति की रचना अच्छी तो मैं क्यों नहीं?
मैं तो सोच रहा, तुम भी सोचो ना। 
सोचना फिर तो खोजना मुझे,
क्यों की कल ही तो डेरा लगाया था,
और आज उखड भी गया। 


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