The story of a River

कल कल, कल कल करती,
मस्त चाल से चलती नदी,
चली जा रही सागर से मिलने।

पर्वतों की गोद में खेलती,
धरती के ह्रदय में अठखेलियाँ करती,
देखो तो सागर से मिलने चल दी।

कितने युग बदले,
कितनी सभ्यताएँ बदलीं,
नहीं बदली तो यह नदी।

सब देखा है इसने,
सब सहा है इसने,
फिर भी देखो चञ्चलता आज भी उतनी ही है।

कभी गाँव लीलती है, तो कभी सिंचाई करती है,
कभी पत्थर काटती है, तो कभी खुद को बंधवा लेती है,
फिर भी सबकी प्यास मिटाती जाती है।

जो छूट गया, ना उसका दुःख,
जो आगे आएगा, ना उसका भय,
इसे तो बस चलते जाना है।

पर्वतों का सन्देश सागर तक पहुंचाना है,
अपना रास्ता स्वयं ही बनाना है,
जन्म से वृद्धावस्था तक बस चलते ही जाना है। 

Comments

Popular posts from this blog

Flags and their meanings in Mahabharata

Ganesha - Reviving the series - 10

Karwa Chauth - Why does moon rise so late?