A twisted ode to the monsoon

Now that monsoon has entered India and is all set to advance further, I thought it apt to share my twisted ode to rains. Please note that this in no sense a subliming of their importance. Hope you shall get the message as you go through the words -

मुझे  बारिशों से प्रेम है
यह प्रेम  सन्देश लाती हैं।
तन -मन का मैल धोती हैं
दुःख दूर कर सुख लाती हैं।
धरा के ह्रदय ज्वाला शांत करती हैं
धरतीपुत्रों को जीवन दान देती हैं।
सर्वत्र हरियाली का सन्देश देती हैं
 और प्रेमी इन मेघदूतों को देख प्रसन्न हो उठते हैं।

एक रोज बारिश आई थी
निर्मम निरंतर बारिश।
सर्वत्र अँधेरा, सर्वत्र नीर
देखने से लगता मानो यहीं है क्षीर।
सब कुछ बहा ले गयी वह बारिश
पेड़, पौधे, ढोर, डंगर सब।
 उन्हें भी जो बारिश का स्वागत  करते थे,
नाच गा कर मन में उमंग भरते थे।
यह बारिश सब बहा ले गयी,
तुम्हें भी।

 अब मुझे बारिशों से घृणा है।
इसका काम सिर्फ बहाना है।
इसमें भीगने का जो रस है ,
वह मात्र एक छलावा है।
इसके चले जाने पर हाथ कुछ नहीं आता है,
कपड़ों के साथ मन भी निचुड़ जाता है।
रह जाती है  टीस,
एक मिलन की,
एक खालीपन की।
इसी बारिश में तुम बह गए,
जीवन भर तड़पाने को अपनी यादें छोड़ गए। 

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