Saturday, January 25, 2014

Astitva - Identity

The following work is my own. this is my attempt at understanding self and one's identity!

अस्तित्व की खोज में निकला था मैं,
अस्तित्व ही खो कर आ गया मैं।
सुना, देखा पर पाया नहीं,
उसे तो कोई समझा ही नहीं।
               वन में वृक्ष का अस्तित्व,
               वृक्ष में पत्तों का अस्तित्व,
               क्या पाया है कोई?
               समझ पाया है कोई?
सागर में जल का अस्तित्व,
जल में बूँद का अस्तित्व,
प्रेम में प्रेमियों का अस्तित्व,
क्या समझा है कोई?
                अस्तित्व तो समर्पण है,
                अस्तित्व तो रचना है,
                अस्तित्व तो प्रेम है, ना ईर्ष्या है,
                देखा, पाया और समझा बस इतना ही। 

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