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Showing posts from March, 2015

Loyalty - Towards whom and for what?

A few years ago when Ramanand Sagar directed “Ramayana” and then “Uttar Ramayana”, all of us suddenly became aware of the stories and the knowledge imbibed in the great epic. While Ramayana focused on the life and character of Sri Ramchandra as growing into a great king or ruler, the Uttara Ramayana focuses on the life of Sri Ramchandra as a ruler of Ayodhya. Along with the faces of Arun Govil as Ram and Deepika Chikhliya as Sita, Ramanand Sagar also became a face in every family. Ramanand ji touched upon the topic of Sita and Ram’s end very carefully and delicately so as not to hurt the public sentiments. While reading through the Valmiki Ramayan, when Ram finds out about Luv and Kush, he offers them to come to their kingdom as princes. When asked about Sita, Ram responds that he had never exiled or left his wife but the queen of Ayodhya. Ram had always upheld his principles. Knowing it all, Sita chose to return back to Mother Earth. Later Ram requested for solitary time in his cha

Aaj fir holi hai

आओ खेलें रंग, गुलाल और अबीर संग, भर भर मारें पिचकारी क्यों की आज फिर होली है। खेलो रंग, पियो भंग, मचाओ हुड़दंग, नाचो एक संग, क्यों की आज फिर होली है। जाली थी जा होलिका, हार बुराई की हो ली थी। मन में भर उमंग , खेली सबने होली थी। बापू ने जो दिखाई राह अहिंसा की हो ली थी। भगत सिंह ने हो लाचार, खेली खून से होली थी। दंगों में जो जली वह सभ्यता की होली थी, पाश्विक  कृत्यों में उलझ मानवता की धज्जियाँ भी तो हो लीं थीं। होलिका संग गन्ने जलाओ घर का पुराना कूड़ा जलाओ। साथ ही जलाओ मन का अंतर्मन जो दुर्भावना में ग्रसित हो चुका है। क्यों की आज फिर होली है रंग संग खेलें हम आज फिर होली है मन में फिर क्यों है मुटाव जबकि आज फिर होली है। खेलो जी भर कर क्यों की आज फिर होली है। करो नाश पाश्विकता का, अमानवीयता का लगाओ रंग मेल का, हमदर्दी का, क्यों की आज फिर होली है।