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Showing posts from July, 2014

Dreams

जाग उठा हूँ मैं, उस बेदर्द नींद से, जो हमेशा साथ में, कितने सारे सपने ले आती है। उन्हीं टूटे सपनों की टीस, अब भी महसूस होती है। उन्हीं अनकहे सपनों में न जाने, किस किस से बात होती है। इन्हीं सपनों में, सारी ज़िन्दगी उतर आती है। कभी शिखर पे ले जाती है, कभी खाई में पटक जाती है। हर सपना मुझे घाव नया दे जाता है। जमीन के नीचे और नीचे, दफ़न कर जाता है। सपने सच नहीं होते, यह मैंने सीखा है। पर सपने ना देखूं, यह भी कहाँ हो पता है? सपने मन का आईना हैं, तभी तो मैं सपने देखता हूँ। और हर बार चोट खा कर, अपने घाव पर आंसुओं का मलहम रखता हूँ। जाग तो चुका हूँ मैं, उस बेदर्द नींद से, पर फिर से अपने आगोश में लेने को, चले आ रहे हैं, यह काँच के सपने।

Importance of storytelling

Today we were celebrating July 4 th – the US Independence day. While waiting for the fireworks show to begin, the kids asked me to tell them a story. Even before I could start, the younger one interrupted me with a question – "Why do we tell stories? And how do you know all the stories?" the question left me thinking for a long time. Today's blog is my attempt to answer the same question with inspirations from many great storytellers. Recently, I had come across another alumni of my college. He has taken up a full time profession of being a story teller. At the same time, a lot of other colleagues have been stressing the importance of storytelling. What is storytelling and why is it so important? Let's first understand what is a story? A story is an expression of an idea along with the situation that helps explain the idea in a better manner. The entire scenario is laid out in such a manner that the central idea is easily understood by listener or the reader. The per...

An ode to parents - Janak - Janani

हरी कोंपलों में जन्मे थे, मजबूत शाखा से लग सपने भी तो देखे थे? फिर, आज इन पीले पत्तों से मुंह क्यों मोड़ लिया? इन्हें भी तो, समय ने यहाँ ला कर छोड़ा। इन्हीं के तो तुम रूप हो, इन्हीं की हो छवि। यह तुम्हारे जनक हैं, और यही तुम्हारी जननी। 

The story of a River

कल कल, कल कल करती, मस्त चाल से चलती नदी, चली जा रही सागर से मिलने। पर्वतों की गोद में खेलती, धरती के ह्रदय में अठखेलियाँ करती, देखो तो सागर से मिलने चल दी। कितने युग बदले, कितनी सभ्यताएँ बदलीं, नहीं बदली तो यह नदी। सब देखा है इसने, सब सहा है इसने, फिर भी देखो चञ्चलता आज भी उतनी ही है। कभी गाँव लीलती है, तो कभी सिंचाई करती है, कभी पत्थर काटती है, तो कभी खुद को बंधवा लेती है, फिर भी सबकी प्यास मिटाती जाती है। जो छूट गया, ना उसका दुःख, जो आगे आएगा, ना उसका भय, इसे तो बस चलते जाना है। पर्वतों का सन्देश सागर तक पहुंचाना है, अपना रास्ता स्वयं ही बनाना है, जन्म से वृद्धावस्था तक बस चलते ही जाना है।